19-08-71  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

सबसे सूक्ष्म बन्धन - बुद्धि का अभिमान

योगयुक्त और बन्धनमुक्त बने हो? जितना-जितना योगयुक्त उतना ही सर्व बन्धन मुक्त बनते जाते हैं। तो योगयुक्त की निशानी है ही बन्धनमुक्त होना। अपने सर्व बन्धनों को जानते हो ना कि किस-किस प्रकार के बन्धन हैं जो योगयुक्त होने में रूकावट डालते हैं? जैसे सर्व दु:खों की लिस्ट निकालते थे, वैसे भिन्न-भिन्न बन्धनों की लिस्ट निकालो। उस लिस्ट को सामने रखते हुए चेक करो कि कितना बन्धनों से मुक्त हुए हैं और कितने बन्धन अभी तक रहे हुए हैं। इससे अपने सम्पूर्ण योगयुक्त अर्थात् सम्पूर्ण स्टेज को परख सकते हो कि कितना सम्पूर्ण स्टेज के नजदीक पहुंच पाये हैं। बन्धनों की लिस्ट सामने लाओ, कितने प्रकार के बन्धन होंगे? इनकी लिस्ट निकलेगी तो जाल माफिक दिखाई देगी। कितनी महीन तारों की जाल बनाते हैं। तो अब जज करो कि कितने बन्धन रह गये हैं और कौन-कौनसे रह गये हैं? कोई बड़े- बड़े बन्धन हैं वा छोटे-छोटे बन्धन हैं? ज्यादा मेहनत किन बन्धनों को चुक्तू करने में लगती है? सभी से कड़े से कड़ा बन्धन कौनसा है? (देह-अभिमान)यह तो सभी बन्धनों का फाउण्डेशन है। लेकिन प्रत्यक्ष रूप में सभी से कड़ा बन्धन कौनसा है? लोक-लाज तो बहुत छोटी बात है, यह तो फर्स्ट स्टेप है। सभी से बड़े ते बड़ा अन्तिम बन्धन है श्रीमत के साथ अपने ज्ञान-बुद्धि को मिक्स करना अर्थात् अपने को समझदार समझकर श्रीमत को अपनी बुद्धि की कमाल समझकर काम में लगाना। जिसको कहेंगे ज्ञान-अभिमान अर्थात् बुद्धि का अभिमान। यह सभी से सूक्ष्म और बड़ा बन्धन है। इस बन्धन से क्रास किया तो मानो सभी से बड़े ते बड़ा जम्प दिया। कोई भी बात में अगर कोई मधुर शब्दों में भी कमजोरी का इशारा दे और उसी समय कोई संस्कार, स्वभाव वा सर्विस के लिए बुराई आकर करते हैं; तो दोनों ही बातें सामने रखते हुए सोचो कि ज़रा भी वृत्ति में वा दृष्टि में वा सूरत में फर्क आता है? ज़रा भी फर्क नहीं आये, ज़रा भी हिम्मत-उल्लास में अन्तर नहीं आये - इसको कहा जाता है इस बन्धन को क्रास करना। अगर मुख से न बोला लेकिन सुनी हुई बात का व्यर्थ संकल्प भी चला तो इसको कहेंगे बड़े ते बड़ा बन्धन।

जो गायन है निन्दा-स्तुति, हार-जीत, महिमा वा ग्लानि में समान; अर्थात् बुद्धि में नॉलेज रहेगी कि यह हार है, यह जीत है, यह महिमा है, यह ग्लानि है, लेकिन एकरस अवस्था वा स्थिति से डगमग न हो-इसको कहा जाता है समानता। नॉलेज होते हुए भी डगमग नहीं होना - यह है विजय। तो इस कड़े बन्धन को क्रास कर लिया अर्थात् सम्पूर्ण फरिश्ता बन गय्। इसके लिए मुख्य प्रयत्न कौनसा है? यह अवस्था कैसे रखें जो इस बन्धन को भी क्रास कर लें?

ज्ञान-अभिमान को कैसे क्रास करें? इसका पुरूषार्थ क्या है? आप सभी ने जो भी बातें सुनाईं वह भी अटेन्शन में रखने की हैं। लेकिन साथ-साथ इस कड़े बन्धन को क्रास करने के लिए सदैव यह बातें याद रहें कि हम कल्याणकारी बाप की सन्तान हैं। जो भी देखते हैं, सुनते हैं उनमें अकल्याण का रूप होते हुए भी अपनी कल्याण की बात को निकालना है। भले रूप अकल्याण का, हार वा ग्लानि का हो, क्योंकि स्थिति को डगमग करने के कारण यह तीनों ही होते हैं। तो रूप भले यही दिखाई दे लेकिन उस अकल्याण के रूप को कल्याणकारी के रूप में ट्रॉन्सफर करने की शक्ति वा ग्लानि को भी उन्नति का रूप समझ धारण करने की शक्ति वा हार से भी आगे के लिए हजार गुणा विजयी बनने की हिम्मत, उल्लास और युक्ति निकालने की शक्ति अगर अपने पास है तो कभी भी सूरत और सीरत में उनका असर नहीं पड़ेगा। तो रहस्य क्या हुआ? कोई भी बात को वा समस्या को ट्रॉन्सफर कर ट्रान्सपेरेन्ट (पारदर्शी) बनना है अथवा अपकारी पर भी उपकारी बनना है। जैसे संस्कारों की समानता के कारण कोई सखी बन जाती है, ऐसे निन्दा करने वाले को भी उस स्नेह और सहयोग की दृष्टि से देखना है। संस्कारों के समानता वाली सखी और ग्लानि करने वाली - दोनों के लिए अन्दर स्नेह और सहयोग में अन्तर न हो। इसको कहा जाता है अपकारी पर उपकार की दृष्टि अथवा विश्व- कल्याणकारी बनना। ऐसी स्थिति अब बन जाती है तो समझो सम्पूर्णता के समीप हैं। ऐसे नहीं - जिनके संस्कार मिलेंगे उनको साथी बनायेंगे, दूसरों से किनारा कर लेंगे। भले कड़े संस्कार वाली हो, उनको भी अपने शुभचिन्तक स्थिति के आधार से ट्रॉन्सफर कर समीप लाओ। जब कोई होपलेस केस को ठीक करते हैं तब ही तो नाम बाला होता है ना। ठीक को ठीक करना वा ठीक से ठीक होकर चलना - यह कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है अपनी श्रेष्ठ स्मृति और वृत्ति से ऐसे-ऐसे को भी बदलकर दिखाना। देखो, होम्योपैथिक दवाई की इतनी छोटी-छोटी गोलियां कितने बड़े रोग को खत्म कर सकती हैं! तो क्या मास्टर सर्वशक्तिमान् अपने वृत्ति और दृष्टि से किसके भी कड़े संस्कार के रोग को खत्म नहीं कर सकते। अगर कोई के संस्कारों को पलटा नहीं सकते वा खत्म नहीं कर सकते हैं, तो समझो मुझ मास्टर रचयिता से तो रचना की शक्ति ज्यादा काम कर रही है। जैसे मिसाल बताया - छोटी-सी गोलियां रोग को खत्म कर सकती हैं, वह दवाई यह नहीं कहती कि रोग को कैसे मिटायें। तो क्या आपकी रचना में शक्ति है और आप मास्टर रचयिता में नहीं?

सदैव यह लक्ष्य रखो कि ट्रॉन्सफर होना है और ट्रॉन्सफर करना है। ऐसे नहीं कहना कि यह ट्रॉन्सफर हो तो मैं ट्रॉन्सफर हो जाऊं। नहीं। मुझे होना है और मुझे ही करना है। जो ऐसे हिम्मत रखने वाले बनते हैं, वही विश्व के महाराजन् बन सकते हैं। तो विश्व-महाराजन् बनना है तो जो दैवी परिवार की आत्माएं भविष्य के विश्व में आने वाली हैं अर्थात् यह छोटा-सा परिवार जो विश्व-राज्य के अधिकारी बनने वाले हैं, इन सभी आत्माओं के ऊपर अब से ही स्नेह का राज्य करना है। आर्डर नहीं चलाना है। अभी से विश्व-महाराजन् नहीं बन जाना है। अभी तो विश्व-सेवाधारी बनना है। स्नेह देना ही भविष्य के लिए जमा करना है। यह भी देखना है कि अपने भविष्य के खाते में यह स्नेह कितना जमा किया है। ज्ञान देना सरल है, लेकिन विश्व-महाराजन् बनने के लिए सिर्फ ज्ञान-दाता नहीं बनना है, इसके लिए स्नेह देना अर्थात् सहयोग देना है। जहाँ स्नेह होगा वहाँ सहयोग अवश्य होगा। अगर यह हाई जम्प दे दिया तो सभी बातों में श्रेष्ठ सहज ही बन जायेंगे।

अच्छा, अब भट्ठी वालों ने अपने को ट्रॉन्सफर किया? जितना ट्रॉन्सफर किया होगा उतना ही हरेक की सूरत ट्रान्सलाइट के चित्र के मिसल दिखाई देगी। ट्रान्सलाइट का चित्र दूर से ही स्पष्ट दिखाई देता है। तो ऐसे सभी बातों में स्पष्ट और श्रेष्ठ बने हो? (बनेंगे) कब तक बनेंगे? पांच वर्ष तक? कब तक का वायदा किया है? इतनी शक्ति अपने में भरी जो कैसी भी समस्याएं आयें, कैसी भी बातें न बनने वाली भी बन जाएं, तो भी अचल, अडोल एकरस रहेंगे? ऐसी अपने में शक्ति भरी है? ऐसे नहीं कहना कि यह तो हमको पता ही नहीं था - ऐसा भी होता है! नई बात हुई, इसलिए फेल हो गया - यह नहीं कहना। जब भट्ठी करके जाते हो तो जैसे अपने में नवीनता लाते हो। तो माया भी परीक्षा लेने के लिए नई-नई बातें सामने लायेगी। इसलिए अच्छी तरह से मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर त्रिकालदर्शी बनकर जा रहे हो, तो दूर से ही माया के वार को पहचान कर खत्म कर दो, ऐसे मास्टर सर्वशक्तिमान् बने हो? ‘‘क्या, क्यों’’ की भाषा खत्म की? ‘‘क्या करें, कैसे करें’’ - यह खत्म। सिर्फ तीन मास का पेपर नहीं, अभी तो अन्त तक का वायदा करना है। यह तो गैरन्टेड माल हो गया ना। अपनी यथा शक्ति हरेक ने जो भी प्रयत्न किया वह बहुत अच्छा किया। अब अच्छे ते अच्छा बनकर दिखाना। ज्ौसे यह नशा है वैसे ही प्रवृत्ति में रहते हुए भी इस नशे को कायम रखना है। इस ग्रुप का छाप क्या रहा? कोई आपको बदल न सके लेकिन आप सभी को बदल कर दिखाना। कोई परिस्थिति वा कोई वायुमण्डल हमको नहीं बदले लेकिन हम परिस्थितियों को, वायुमण्डल को, वृत्तियों को, संस्कारों को बदल कर दिखायें - यह पक्का छाप लगाना है। ट्रेड-मार्क भट्ठी का अविनाशी लगा कर जाना है। अपना ट्रेड-मार्क नहीं भूलना। अगर भट्ठी के धारणाओं की स्मृति साथ-साथ रखेंगे तो सफलता सदैव साथ रहेगी। अच्छा।